रूद्राक्ष धारण के मंत्र — (1) ‘ओम हूं नम:' ; (2) ‘ओम नम:’; (3) ‘क्लीं नम:’; (4) ‘ओम ह्रीं नम:’; (5) ‘ओम ह्रीं नम:’; (6) ‘ओम हूं हूं नम:’; (7) ‘ओम हूं नम:’; (8) ‘ओम हूं हूं’; (9) ‘ओम हूं नम:’; (10) ‘ओम हृं हूं’; (11) ‘ओम ह्रीं हूं’; (12) ‘ओम हूं नम:’; (13) ‘ओम कौं क्षौ:’; (14) ‘ओम ह्रीं नम:’। इन चौदह मंत्रों द्वारा क्रमशः एक से लेकर चौदह मुख वाले रूद्राक्ष को धारण करने का विधान है। साधक को नींद और आलस्य का त्याग कर श्रद्धापूर्वक से मंत्रों द्वारा रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।
शिव पुराण’ में भगवान शिव के महात्म्य, लीला और उनके कल्याणकारी स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया गया है। गौरीश्वर भगवान शिव महामांगल महादेव हैं। वे अनादि सिद्ध परमेश्वर और सभी देवों में प्रधान हैं। वेदों में भगवान शिव को अजन्मा, अव्यक्त, सबका कारण, विश्वव्यापक और संहारक माना गया है। शिव का अर्थ है कल्याणस्वरूप अर्थात सभी का भला करने वाला। वे देवों, मानव, गंधर्व, मनुष्य, ऋषि-मुनि, सिद्ध, योगी, तपस्वी, संन्यासी, भक्त और नास्तिकों की भी कल्याण करने वाला हैं।
विश्व कल्याण के लिए वे स्वयं गरल का पान करने वाले नीलकंठ हैं और संसार में प्रलय मचाने वाले तांडव। वे स्वयं भगवान हैं और सभी देवताओं के आराध्य हैं। इस महापुराण में शिवतत्व का विशद विवेचन किया गया है। सरल गद्य-भाषा में शिव के विविध अवतारों, नामों, लीलाओं, उनकी पूजा विधि, पंचाक्षर मंत्र की महिमा, अनेकों के ज्ञातप्रद आदेश, शिष्याद्रत तथा उद्धेश्यपरक कथाओं का अत्यंत सुंदर आकंलन किया गया है। इस पुराण में प्रयास किया गया है कि भाषा को सरल से सरल रखा जाए, ताकि श्रद्धालु पाठक शिव के कल्याणकारी स्वरूप और शिवत्व के मर्म को सहज रूप से हृदयंगम कर सकें।
हमें विश्वास है कि श्रद्धालु और जिज्ञासुजन इस महान पुराण को अनुसरण करके अपने जीवन को उपकृत कर पाएंगे क्योंकि शिव ही एक ऐसे परम ब्रह्म हैं, जो अच्छे-बुरे सभी के लिए सहज सुलभ हैं। यह उनकी विश्वव्यापकता और अद्वितीयता ही है कि जहां अन्य साधनाओं में तमोगुण की अपेक्षा की जाती है, वहीं शिव तमोगुण का परित्याग कर उसे ‘सत्व’ के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। विश्व को स्वस्थ रखने की औषधि बनाने की युक्ति-साधना शिव के अलावा और कौन बताएगा। तभी तो महादेव हैं। इसलिए उन्हें भोलानाथ कहा जाता है। शिव संकल्पमस्तु!