Shiv Puran: शिव लोक के वैभव का वर्णन | अध्याय १७ | Ajay Tambe

Shiv Puran: शिव लोक के वैभव का वर्णन | अध्याय १७ | Ajay Tambe

शिव पुराण हिंदी में : "विद्येश्वर संहिता" भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ महाशिवपुराण का प्रथम भाग है। शिवपुराण अठारह पुराणों में से एक प्रसिद्ध पुराण है। इस पुराण में २४,००० श्लोक है तथा इसके क्रमश: ६ खण्ड है- इस भाग में निम्न विषयों पर सविस्तार वर्णन मिलता है:- प्रयाग मे सूतजी से मुनियोंं का तुरन्त पाप नाश करनेवाले साधन के विषय मे प्रश्न शिवपुराण का परिचय साध्य-साधन आदि का विचार तथा श्रवण,कीर्तन और मनन –इन तीन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन महेश्वर का ब्रह्मा और विष्णु को अपने निष्कल और सकल स्वरूप का परिचय देते हुए लिंगपूजन का महत्त्व बताना विद्येश्वर संहिता भगवान शिव से सम्बन्धित है। इस संहिता में 'शिवरात्रि व्रत', 'पंचकृत्य', 'ओंकार का महत्त्व', 'शिवलिंग की पूजा' और 'दान के महत्त्व' आदि पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। इसमें बताया गया है कि रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है, जिसमें स्वयं ही छेद होता है।

[00:00:00] शिव पॉरान, यह नहीं बाज़ाय प्रनव्व का महात में वष्वलोक के बेबव का वरनन. रूषी बोले, महामुनी, अप हमें प्रनव् मन्त्र का महात में तफ शिवकी बखती पुजा का विदान सुना एप. प्रनव का महाद मिसुज जीने कहा, महर्षियो, आप लोग तपस्वी के दनी है, तथा आपने मनुश्यो की बलाई के लिए बहुत ही सुन्दर प्रष्न किया है. मैं आपका इसका उत्तर सरल भाश्वे देरहा हू, प्रब प्रडती से उत्मन समस्थ रुपी महाशागर का नाम है, प्रनव इस्से हर प्रकार के लोगो स्वरन स्वरूप देता है, इसले इसको प्रनव कहा जाता है, प्रनव अथाड्ध, प्रनव मंट्र ओम, जिसे अकाल लिंग, नाद लिंग, अंकर या अम के आमसे चाना जाता है आद्तात पouver thishivroop दिता है इसले विद्वान उसे प अम आम से चानते है वाछन आमसे घिब्या फार सात गयान प्रकित करता है इसले यह परनअव है परनव के दोबिध है वाछन तरदब पुरुश तौर वाज न है , अोंuestosुच्मप्रनव वननमः היה६ या पन्याक्शर मन्त्र श्खृल प्रनव है , जीवन मुखत प्रुषके लिए सूच्मप्रनव के जाब का विदान है because यह सभी सादनो का सार है देहे को विलग होने जग सूच्ultan्मप्रनव मन्त्र का जाब अद्तात, परमात्मा तत्व का अनुसन्दान करता है शरीर छॉटने पर प्रम्मस्वरुब शिव की प्राप्त करता है इस मंद्र का चतीस करोड़बार जाब करने से मनुश्योगी हो जाता है या अकार, बुकार, मकार, पिंदू, और नाद सहित अद्तात आ उ, तीन्दिर्ग अच्षरों और मात्राँ सहित प्रनव होता है जो योग्यों के हरदाय में निवास करता है यही सब पापो का नाश करने वाला है अश्व है, उष्खती और मकार इंकी एकता है प्रित्वी, जल, तेज, वायु और अकाश पाज भूट तथा शब्द, सबभर्ष, आदी पाज विषय कुल मिलागर दस वस्ट्रो मुख्यो की कामना के विषय है इंका आश्वे मन्न में लेकर जो करमो का अनुसरन करते हैं अदी के अश्ड़े, सब शब रस्वादि को पार करते दे हैं अद्रिकाल के समपुन् धुख को नश्ट कर दे दे हैं जीवन के लिए, जिन्को पश्चक्षर का आदार प्राभत होता है विट्टुब रदी, समपुन् डॉख्खो का नवषvideo अपाँइंकिं तीबाब़्धाह क्या झेदाबऍगों के आपाऔदिय, मनिमनत्र आठ्रैजेः से जंभ टुक को पार कर देएश्टोग इस्रेइ, वोठी बढ़ी कर तीबाबदऊका लिए आद्फ्वार अजिस्ट्ग लि्संस्योfront द्खाऊँँउऐश्मि, जीवन के लिए जिनको पन्चक्षर का अदार प्राप्त होता है, बिद्तूर दिए समपून तुखो का नाश कर देते हैं. औम वंट्र को नित्यजाब से जीवन मरन के करम से चुट कर त्री लोग में विशेश प्रदिष्था प्राप्त करते हैं. इंट्रियों को वश्मे करने कि लिए त्रिकाल का जाब करते है, सुख शान्ती प्राप्त होती हैं और शेव लोग में पुजनी होते हैं. जपयोग कवरन रश्यों अब मैं तुम से चपयोग का वरनन करता हूं. सर्व प्रथम् मनुश्षी को आपने मंको शुथकर पंचाखषर मुन्तर नमा हँॄ शिवाये का जाब कर में आजाए है. यह मुन्तर समपोभन सिद्याब करतान करता है. इस पंचाखषर मुन्तर के आरंभ में औम आंकार का जाब कर ना छईए. गुरु के मुखसे पन्चाक्षर मंत्र का उब्टेश पाकर, क्रिषनपक्ष प्रतीपदा से लेकगर चतुर्टषी तक, सादھक रोज एक बार परिमित भूजन करे, मून रहे, आईड़्ियो को वश्मे रख्ये, माता पिता की सेवा करे, नियम से एक सहस्टर पन्चाक्षर मंत्र का जाब करे, तब ही उसका जब्योंक शुद्द होता है. बख्वान शिव का निरन्तर चिन्तन करते हुए, पन्चाक्षर मंत्र का पाज लाग जाब करे, जब काल में शिव जी के कल्यान मैं स्वरूब का द्यान करे. आँईसा दियान करे, कि बवान शिव कमल के आसन पर विराज्मान है. उनका मस्तक गंगाजी और चंद्रमा की कलासे सुशोभिद है. उनकी बाई और भगवती उमा विराज्मान है. अनेक शिवगरन वहाग खडे होकर, अनकी अनुपम चवी को निहार रहे है. मैं द्रम सदाशिव का बारंभार समरन करते हुए, सुर्यावन्ष के पहले उनके मानसिख पुजा करूँगा. बूर्व की और भूख कर के पन्चाख्षर मंद्र का जाब करे. उन दिनो सादध शुद भख्ष करे, अपन्चाबूडो की सुद्धि करे, वेदों एवम आगने प्रज्वलन कर, गंगा और अन्ये पवित्रनद्यों का आहँवान करे. सुव अगोर्यो स्वैम्दे, या एक साथ से सुव आहुतिया बारी भारी सिदिलारे. तक्षना के रूँपम पहले है. अपन्चाखषर के चरनो को दूए, तथा सुद्ध जल सिनान करावे. आफसे भक्तों के समपूडन भूजन करागर, देवेश्वर शिव से प्रार्टना करने से, उसके सभी पापो कान अपन्चापूडन करे. अपन्चाखषर के चरनो को दूए, अपन्चाखषर के चरनो को दूए, तथा सुद्ध जल से सनान करावे. आफसे भक्तों के समपूडन भूजन करागर, देवेश्वर शिव से प्रार्टना करने से, उसके सभी पापो कान नाश हो जाता है. पूणब आज लाक जाब करने पर, पूणब आज लाक जाब करने पर, भूथल से सबत लोग तक, चोड़़ भूँनो पर अदिकार प्राप्थ हो जाता है. कर्म माया और यान माया का तत पर, माया का अद्ट है, लक्ष्मी. उसे कर्म भोख प्राप्थ होता है. कर्म माया और यान माया का तत पर, माया का अद्ट है, लक्ष्मी. उसे कर्म भोख प्राप्थ होता है. इस Blessed Being is the Grace. उसे माया 根त गियान भोख कि प्राप्ती होता है. उसे माया या ग्यान माया भी खाल गया है. उर्ठ उसीमा से नीचे नश्वर भोख है. नश्वर भूग में जीव सखाम करमों का अनुसरन करता हुए बिविन नयोनियों एवं लोकों के चकर काडता है. भिन्तृ पुजां में तल्लीन रहने बाले उपासक नीचे के लोको में गूमते है। निशकाम भाव से शिवलिंग की पुजा करने वाले उपर के लोक में जाते है। नीचे करम लोक के और यहां सानसारिएग जीव रहते है। उपर गयान लोग है जिस में मुक्त पूभ्रुष रहते हैं और अद्धियात में कुपासना करते है। शिवलोक के वेबव का वरनन, जो मनुश्ष यहिन्सा से बहुगान शिव की पुजा में ततपर रहते हैं, काल चकर को पार कर जाते है। काल चकर की सीमा तक महेश्वर लोक है, उस से उपर व्रिषव के आकार में धर्म की स्थिति है। उसके सत्यशव अहिन्सा और दया चार पाद है, वह साख्षाट शिवलोक के दुर पर कड़ा है, क्षमा उसके सींग है, शमका. वेद-वेदांग मुर्ती शब्ट से विराज्मान है, पवित्र उसके नेट्रव विवेख्ता और बुद्धि मन है, त्रिपूंडक अदीदर्म मुर्ती ब्रहस्पती है, जिस पर शिव आह्वा होते है, व्रम्हा विश्नु और महेश को आयु के दिन कहते है, कल्यान कार्य रास के स्रालोग तक अद्धात चोड़ह लोको स्ते दे, जो पाच भोड़िग गंद से मुख्त है, उन में कल्यान कारिनी स्तिदी है, शिव्मुर्ती का चब्बन लोक विद्यमान है, सब से उपर जो आवरन्च से युक्त ब्रम्ह मंडल कैलाश है, उसे पाच मंडलो पाचो लोको, सातो तरिषूल और शिव्मुर्ती से समफुण नित्य पुजा से निवास रहता है, इसिल्ये शिव्मुर्ती में सथ्य आहिन्सा और खषमा रुपी पविद्रता होती है, जिन पर शिव की ग्रिबाद्रिष्टी पडचुकी है, वे सब मुभ्थ होटे है, अपनी आद्मा में आनंद का अनुबभव करना ही मुभ्टी का सादन है,

[00:08:03] इस्क्टी लिंको शिव मानकर अपने को शक्ती रुब समचकर, शक्ती लिंको देवी मानकर पुजन करे, शिव भक्त शिव वंट्र रुप होने कारण शिव के सवरुप है, जो सोलः उप्चारो से उनकी पुज़ा करता है, अबहीष्ट भलो की प्राभती होती है, उपासना के अपरानत शिव भक्त की सेवा से विद्वानो पर शिव जी प्रसन न होते है, पाज, दस, या सो सपतनीक शिव भक्तो को बुलाकर आदर पुडवक भोजन कराए, शिव भावना रकते हुए निष्खपट पुज़ा करने से बुतल पर फिर जन्म नहीं होता.