Shiv Puran: शिव लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन | अध्याय १६ | Ajay Tambe

Shiv Puran: शिव लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन | अध्याय १६ | Ajay Tambe

शिव पुराण हिंदी में : "विद्येश्वर संहिता" भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ महाशिवपुराण का प्रथम भाग है। शिवपुराण अठारह पुराणों में से एक प्रसिद्ध पुराण है। इस पुराण में २४,००० श्लोक है तथा इसके क्रमश: ६ खण्ड है- इस भाग में निम्न विषयों पर सविस्तार वर्णन मिलता है:- प्रयाग मे सूतजी से मुनियोंं का तुरन्त पाप नाश करनेवाले साधन के विषय मे प्रश्न शिवपुराण का परिचय साध्य-साधन आदि का विचार तथा श्रवण,कीर्तन और मनन –इन तीन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन महेश्वर का ब्रह्मा और विष्णु को अपने निष्कल और सकल स्वरूप का परिचय देते हुए लिंगपूजन का महत्त्व बताना विद्येश्वर संहिता भगवान शिव से सम्बन्धित है। इस संहिता में 'शिवरात्रि व्रत', 'पंचकृत्य', 'ओंकार का महत्त्व', 'शिवलिंग की पूजा' और 'दान के महत्त्व' आदि पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। इसमें बताया गया है कि रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है, जिसमें स्वयं ही छेद होता है।

[00:00:00] शिव्पृराण 16वाँ अध्याय।

[00:00:03] देव प्रतिमा का पूजन तथा शिवलिंग के वैग्यानिक स्वरूप का विवेचन राशियों ने कहा

[00:00:09] साधु शिरोमनी सूथ जी

[00:00:11] हमें देव प्रतिमा के पूजन की विद्धि बताइए

[00:00:13] जिससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है

[00:00:16] सूथ जी बोले

[00:00:18] हे महर्षियों

[00:00:20] मिट्टी से बनाई हुई प्रतिमा का पूजन करने से

[00:00:23] पुन्यस्त्री पुत्र के मनुरत सफल हो जाते हैं

[00:00:25] इसके लिए नदी, तालाब, कूए या जल से भरे गढड्धे की मिट्टी लेनी चाहिए

[00:00:31] इसे स्वच्छ जल से दो कर उसके बाद उसे डाले और अच्छे आकार से सुंदर मूर्ती बनाए

[00:00:37] पदमासं द्वारा स्थापन की गई प्रतिमा के समीप

[00:00:40] गनेश, सूर्य, विश्नू, शिवलिंग का नेत्रों से पूजन करें

[00:00:45] गंध, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य से पूजन कर

[00:00:50] श्री गनेश द्वारा स्थापित, हस्थ निर्मित शिवलिंग का पूजन करें

[00:00:53] इसमें अभीष्ट फल की प्राप्ती होती है

[00:00:55] नमस्कार और जाप सम्पून अभिषेक में उध्यत करने वाला है

[00:01:00] भोब और मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोगों की पूजन के अंगों में

[00:01:04] सदा द्यान देना चाहिए

[00:01:07] जो मनुश्य जिन देवता की पूजन करता है

[00:01:10] वा अत्यंत और नमस्कार का लाब प्राप्त करता है

[00:01:14] तथा उनके बीज के लोकों में उचित पल निश्पादित होता है

[00:01:18] हे महर्ष्यों!

[00:01:20] भूलोक में श्री गनेश पूजनी हैं

[00:01:22] शिवलिंग के दौरा विविध्ध देवतां उंड्र वायू यम वरुन कुबेर सहित इनकी पूजा करता है

[00:01:27] इसके सभी पाप एवम शोक तुरत्थी दूर हो जाते हैं

[00:01:31] वह अभीष्ट पलों की प्राप्ति मोक्ष की प्राप्त करता है

[00:01:34] यदिप किसीका आरंभ होता है तो पुर्वभुर्भभाग पिटरोंके श्रॉध्ध आधी कर्मों के कैव से भाद करता है

[00:01:37] याथाय के प्रभ्ता है

[00:01:41] वेदो में पूजाशब्ध को थीक प्रकार से परिभाषित नहीं किया गया है

[00:02:13] लोक और वेद में पूजा शब्ध का अर्थ विध्या है,

[00:02:17] नित्यकर्म की भविश्य में फल देने वाले होते हैं,

[00:02:21] लगातार पूजन करने से शुब्कामनां की पूर्ति होती है,

[00:02:25] तथा पापों का क्षय होता है, इसी प्रकार,

[00:02:29] तथा अन्य देवतां की पूजा, उन देवतां के वार,

[00:02:33] तिथे, नक्षत्र को द्ध्यान में रखते हुए, तथा श्लोक उच्चारंड से

[00:02:37] पूजन येवम भजन करने से अबीष्ट फल की प्राप्ति होती है,

[00:02:41] शिवलिंग सभी मनोरतों को पूर्ण करता है,

[00:02:45] अर्थात्माग्षुक्ल चतुर्दशी को शिवलिंग की पूजा करने से

[00:02:49] आयू की व्रिध्य होती है, ऐसे ही और भी नक्षत्रों, महिनों

[00:02:53] येवम तिथियों में शिवलिंग की पूजा का भजन, भोब और मोक्ष देने वाला है,

[00:02:58] कार्थिक मास में, देवता峰 का भजन विश्श लापकारी होता है,

[00:03:03] विधिपूर वक के लिये ये बृत है कि इस मास में देवता हुका भजन

[00:03:06] और पूजण सभी दुखों को दूर करने वाला है,

[00:03:10] कार्थिक मासमें, रविवार के दिन जो सुर्य की पुजा करता है

[00:03:13] पूजा करता है और तेल वक कपास का दान करता है, उसका कुछ रोग भी दूर हो जाता है.

[00:03:19] जो अपने तनमन को जीवन पर्यंत शिव को अर्पित कर देता है, उसे शिव जी मोक्ष प्रदान करते हैं.

[00:03:26] योनी और लिंग, इन दोनो स्वरूपों का मिश्र स्वरूप में समाहित होने के कारण विजन्म निरूपन हैं.

[00:03:33] और इसी नाते से जन्म की निव्रित्ती के लिये शिवलिंग की पूजा का अलग विधान है.

[00:03:38] तरमाद करते हैं.

[00:03:41] बिण्दू चक्ति है और नाते स्वरूप.

[00:03:44] इसीलिये सारा जगत श्वषक्ति स्वरूप है.

[00:03:47] नाते बिंदू का, और बिंदू नाते का आधार है.

[00:03:50] आधार में ही अद्यात्म का समावेश अथ्वा लए होता है.

[00:03:53] यही मक्सली करन है.

[00:04:26] देवी उमा जगत की माता हैं और शिव जगत के पिता

[00:04:31] जो इनकी सेवा करता हैं, उस पुत्र पर इनकी क्रिपा निरंद्तर बढ़ती रहती हैं

[00:04:35] वे पूत्रवर क्रिपा करके उसे अपना आंतरिक एश्वर्य प्रदान करते हैं

[00:04:40] अथाथा, शिव्लिंग को माता पिapter का स्वरूप मान कर पुजा करने से आनतरिका अनन्द की प्राप्ती होती है.

[00:04:46] भो, 사� herbs are masculine,

[00:04:57] प्रक्रिति में सविभार पूरूग होने से होणे क्योंगेस इंभांते अया नafftीiset.

[00:05:01] सबम्ЕТ Meu doubt and Nakagna tasith is a supplication.

[00:05:05] यह द्रव उसका जन्व कहलाता है, तथा शिव तत्व का मुख तत्व से यूक्थ होता है

[00:05:12] इसलिए इसे जीवन का मूल कहा गया है

[00:05:15] पाँच प्रकार के द्रवों को मिला कर पंचाम्रित तयार करना चाहिये

[00:05:20] यह द्रव इस प्रकार से होना चाहिये

[00:05:23] गाय का दूध, तही और गी को शहद और शक्कर के सात मिला कर पंचाम्रित तयार करना चाहिये

[00:05:29] और इन्हें अलग-अलग भी रक्षें

[00:05:32] पंचाम्रित से शिवलिंग का अभिषेक यवम स्णान करें

[00:05:36] दूध, व, अन्ये मिलाकर, नहीं वेद्या तयार कर प्रणव मंत्र का जाप करते हुए इसे भग्वान शिव को अर्पित कर दें

[00:05:43] प्रणव को धुनिलिंग, मक्सलिलिंग

[00:05:46] और नादकस्लिंग होने के कारण नादलिंग तदा बिंदूकस्लिंग होने के कारण

[00:05:52] पूजा के समय दीक्षा देने वाले गुरू आचार्य विशेश आकार प्रतीक होने से अकाल लिंग के रूप में प्रतिष्थित हैं

[00:05:57] इनके नित्य पूजा करने से साधक जीवन मुक्त हो जाता है