[00:00:00] शिव्पृराण 16वाँ अध्याय।
[00:00:03] देव प्रतिमा का पूजन तथा शिवलिंग के वैग्यानिक स्वरूप का विवेचन राशियों ने कहा
[00:00:09] साधु शिरोमनी सूथ जी
[00:00:11] हमें देव प्रतिमा के पूजन की विद्धि बताइए
[00:00:13] जिससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है
[00:00:16] सूथ जी बोले
[00:00:18] हे महर्षियों
[00:00:20] मिट्टी से बनाई हुई प्रतिमा का पूजन करने से
[00:00:23] पुन्यस्त्री पुत्र के मनुरत सफल हो जाते हैं
[00:00:25] इसके लिए नदी, तालाब, कूए या जल से भरे गढड्धे की मिट्टी लेनी चाहिए
[00:00:31] इसे स्वच्छ जल से दो कर उसके बाद उसे डाले और अच्छे आकार से सुंदर मूर्ती बनाए
[00:00:37] पदमासं द्वारा स्थापन की गई प्रतिमा के समीप
[00:00:40] गनेश, सूर्य, विश्नू, शिवलिंग का नेत्रों से पूजन करें
[00:00:45] गंध, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य से पूजन कर
[00:00:50] श्री गनेश द्वारा स्थापित, हस्थ निर्मित शिवलिंग का पूजन करें
[00:00:53] इसमें अभीष्ट फल की प्राप्ती होती है
[00:00:55] नमस्कार और जाप सम्पून अभिषेक में उध्यत करने वाला है
[00:01:00] भोब और मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोगों की पूजन के अंगों में
[00:01:04] सदा द्यान देना चाहिए
[00:01:07] जो मनुश्य जिन देवता की पूजन करता है
[00:01:10] वा अत्यंत और नमस्कार का लाब प्राप्त करता है
[00:01:14] तथा उनके बीज के लोकों में उचित पल निश्पादित होता है
[00:01:18] हे महर्ष्यों!
[00:01:20] भूलोक में श्री गनेश पूजनी हैं
[00:01:22] शिवलिंग के दौरा विविध्ध देवतां उंड्र वायू यम वरुन कुबेर सहित इनकी पूजा करता है
[00:01:27] इसके सभी पाप एवम शोक तुरत्थी दूर हो जाते हैं
[00:01:31] वह अभीष्ट पलों की प्राप्ति मोक्ष की प्राप्त करता है
[00:01:34] यदिप किसीका आरंभ होता है तो पुर्वभुर्भभाग पिटरोंके श्रॉध्ध आधी कर्मों के कैव से भाद करता है
[00:01:37] याथाय के प्रभ्ता है
[00:01:41] वेदो में पूजाशब्ध को थीक प्रकार से परिभाषित नहीं किया गया है
[00:02:13] लोक और वेद में पूजा शब्ध का अर्थ विध्या है,
[00:02:17] नित्यकर्म की भविश्य में फल देने वाले होते हैं,
[00:02:21] लगातार पूजन करने से शुब्कामनां की पूर्ति होती है,
[00:02:25] तथा पापों का क्षय होता है, इसी प्रकार,
[00:02:29] तथा अन्य देवतां की पूजा, उन देवतां के वार,
[00:02:33] तिथे, नक्षत्र को द्ध्यान में रखते हुए, तथा श्लोक उच्चारंड से
[00:02:37] पूजन येवम भजन करने से अबीष्ट फल की प्राप्ति होती है,
[00:02:41] शिवलिंग सभी मनोरतों को पूर्ण करता है,
[00:02:45] अर्थात्माग्षुक्ल चतुर्दशी को शिवलिंग की पूजा करने से
[00:02:49] आयू की व्रिध्य होती है, ऐसे ही और भी नक्षत्रों, महिनों
[00:02:53] येवम तिथियों में शिवलिंग की पूजा का भजन, भोब और मोक्ष देने वाला है,
[00:02:58] कार्थिक मास में, देवता峰 का भजन विश्श लापकारी होता है,
[00:03:03] विधिपूर वक के लिये ये बृत है कि इस मास में देवता हुका भजन
[00:03:06] और पूजण सभी दुखों को दूर करने वाला है,
[00:03:10] कार्थिक मासमें, रविवार के दिन जो सुर्य की पुजा करता है
[00:03:13] पूजा करता है और तेल वक कपास का दान करता है, उसका कुछ रोग भी दूर हो जाता है.
[00:03:19] जो अपने तनमन को जीवन पर्यंत शिव को अर्पित कर देता है, उसे शिव जी मोक्ष प्रदान करते हैं.
[00:03:26] योनी और लिंग, इन दोनो स्वरूपों का मिश्र स्वरूप में समाहित होने के कारण विजन्म निरूपन हैं.
[00:03:33] और इसी नाते से जन्म की निव्रित्ती के लिये शिवलिंग की पूजा का अलग विधान है.
[00:03:38] तरमाद करते हैं.
[00:03:41] बिण्दू चक्ति है और नाते स्वरूप.
[00:03:44] इसीलिये सारा जगत श्वषक्ति स्वरूप है.
[00:03:47] नाते बिंदू का, और बिंदू नाते का आधार है.
[00:03:50] आधार में ही अद्यात्म का समावेश अथ्वा लए होता है.
[00:03:53] यही मक्सली करन है.
[00:04:26] देवी उमा जगत की माता हैं और शिव जगत के पिता
[00:04:31] जो इनकी सेवा करता हैं, उस पुत्र पर इनकी क्रिपा निरंद्तर बढ़ती रहती हैं
[00:04:35] वे पूत्रवर क्रिपा करके उसे अपना आंतरिक एश्वर्य प्रदान करते हैं
[00:04:40] अथाथा, शिव्लिंग को माता पिapter का स्वरूप मान कर पुजा करने से आनतरिका अनन्द की प्राप्ती होती है.
[00:04:46] भो, 사� herbs are masculine,
[00:04:57] प्रक्रिति में सविभार पूरूग होने से होणे क्योंगेस इंभांते अया नafftीiset.
[00:05:01] सबम्ЕТ Meu doubt and Nakagna tasith is a supplication.
[00:05:05] यह द्रव उसका जन्व कहलाता है, तथा शिव तत्व का मुख तत्व से यूक्थ होता है
[00:05:12] इसलिए इसे जीवन का मूल कहा गया है
[00:05:15] पाँच प्रकार के द्रवों को मिला कर पंचाम्रित तयार करना चाहिये
[00:05:20] यह द्रव इस प्रकार से होना चाहिये
[00:05:23] गाय का दूध, तही और गी को शहद और शक्कर के सात मिला कर पंचाम्रित तयार करना चाहिये
[00:05:29] और इन्हें अलग-अलग भी रक्षें
[00:05:32] पंचाम्रित से शिवलिंग का अभिषेक यवम स्णान करें
[00:05:36] दूध, व, अन्ये मिलाकर, नहीं वेद्या तयार कर प्रणव मंत्र का जाप करते हुए इसे भग्वान शिव को अर्पित कर दें
[00:05:43] प्रणव को धुनिलिंग, मक्सलिलिंग
[00:05:46] और नादकस्लिंग होने के कारण नादलिंग तदा बिंदूकस्लिंग होने के कारण
[00:05:52] पूजा के समय दीक्षा देने वाले गुरू आचार्य विशेश आकार प्रतीक होने से अकाल लिंग के रूप में प्रतिष्थित हैं
[00:05:57] इनके नित्य पूजा करने से साधक जीवन मुक्त हो जाता है